Valentine -2009

दो हज़ार नौ का Valentine 
उसने पिला दी जैसे wine
मैं तो नशे में ऐसा हो गया
जाने किस दुनिया में खो गया

अर्शे बाद खिला वो चेहरा
जिस पर था चुप्पी का पहरा
इस मुस्कान को तरस गया था
बरसों बेमन बरस गया था

आज ये बरखा कैसी आई
वसंत में सावन ऋतु लाई
मन मयूर मधुवन में नाचे
पाती प्रिय की पिहु-पिहु  बांचे

पाती चार बोल की है बस
उच्चारण करती मेरी नस-नस 
फूल सा हल्का मन लगता है
इत्र सा महका तन लगता है

आसमान में उड़ा सा जाऊं 
भूंख लगी पर नहीं कुछ खाऊं
रात हो गई दुनियां सो गई
मीठे सपनों हर शय खो गई

मैं जागूँ सैया पर अपनी
सिर को रख बैंया पर अपनी
शायद ऑंखें शयन ना चाहें
उन लम्हों का वहन ना चाहें

ये अनुभव तो बड़ा अलग है
पहले से तो बड़ा विलग है
सुन्दर सारा जहान लागे 
हर शय इसकी महान लागे

हर शय इसकी महान लागे
हर शय इसकी महान लागे
(कवि अशोक कश्यप)








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