मैं क्या करूँ:

नेक-नियति हमने जानी और कुछ करने की फिर ठानी
सोचा क्या करूँ, फिर सोचा क्या करूँ

देश-प्रेम था मन में जागा, फौज में भर्ती होने भागा
ठीक समय पर केंट में पहुंचा, ठीक समय पर........
लेट हो गए गार्ड ने घुड़का, लेट हो गए गार्ड ने घुड़का
ज़रा खींचकर नाक को सुडका......

बाहर एक ओफिसर आया, हमने उसको समय दिखाया
देखो साहब विज्ञापन में, समय जो पाया तभी मैं आया..........
पर देखो ना यह संत्री, क्या हो गया है कोई मंत्री
अन्दर ना मुझे जाने देता, देर हो गई ताने देता.....?
अफसर बोला...............
अफसर बोला, उसे मनाओ, चाय वगेरा उसे पिलाओ
मेरी अपनी जेब थी खाली, अफसर हंसा बजायी ताली
फिर मैं क्या करूँ
क्या रिश्वत मैं भरूँ
फिर बोडर पे मरुँ
फिर मैं क्या करूँ
बोलो, फिर मैं क्या करूँ
(कवि अशोक कश्यप)








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