हलचल:

हर पल हलचल, पल-पल हलचल 
कहे ज़िन्दगी चल आगे चल,
चल आगे चल, चल आगे चल 

सुबह हुई सूरज उग आया
नई उमंग तरंगें लाया
चारों तरफ उत्साह नया है
घोर अँधेरा अभी गया है
चिड़िया चहके गुलशन महके
कूंके कोयल यूँ रह रहके
मिल ही गया हो मेहनत का फल
हर पल हलचल पल-पल हलचल ........

हर पल जीवन का जीना है
ज़हर बना, अमृत पीना है 
फूल-शूल की फ़िक्र भूलकर 
हरेक जख्म दिल का सीना है
ज़ख़्म मिले जहाँ सिले भी हैं वहाँ
आज नहीं तो आयेगा वो कल 
हर पल हलचल पल-पल हलचल .........

है तो सब-कुछ मगर नहीं कुछ 
अगर नहीं संतोष कहीं है
स्वर्ग कही नहीं आसमान में
ढूँढो  वो तो यही-कही है
मन खुश है तो तन भी है खुश
तन खुश पर काहे का अंकुश
अंकुश सदा ही बुरा न रहता 
बुरे-भले की समझ वो कहता
इससे शिक्षा लेता तू चल
हर पल हलचल पल-पल हलचल ...........

शुद्धि मन की, है सिद्धि  तन की
अशोक ये सब से कहता है
तब  तक शांति-समृद्धि न मिलती
जब तक मन मैला रहता है
जन सेवा भारी बलशाली
किन्तु सोच  न हो छल वाली
छल से गल जाती है आत्मा
निश्छल चाल होए मतवाली
यही चाल देती सबको बल
हर पल हलचल पल-पल हलचल...... 

कहे ज़िन्दगी, चल आगे चल,
चल आगे चल, चल आगे चल 
हर पल हलचल पल-पल हलचल 
(कवि अशोक कश्यप)

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