मैं क्या करूँ:

मैं क्या करूँ:

नेक-नियति हमने जानी और कुछ करने की फिर ठानी
सोचा क्या करूँ, फिर सोचा क्या करूँ

देश-प्रेम था मन में जागा, फौज में भर्ती होने भागा
ठीक समय पर केंट में पहुंचा, ठीक समय पर........
लेट हो गए गार्ड ने घुड़का, लेट हो गए गार्ड ने घुड़का
ज़रा खींचकर नाक को सुडका......

बाहर एक ओफिसर आया, हमने उसको समय दिखाया
देखो साहब विज्ञापन में, समय जो पाया तभी मैं आया..........
पर देखो ना यह संत्री, क्या हो गया है कोई मंत्री
अन्दर ना मुझे जाने देता, देर हो गई ताने देता.....?
अफसर बोला...............
अफसर बोला, उसे मनाओ, चाय वगेरा उसे पिलाओ
मेरी अपनी जेब थी खाली, अफसर हंसा बजायी ताली
फिर मैं क्या करूँ
क्या रिश्वत मैं भरूँ
फिर बोडर पर मरुँ  
फिर मैं क्या करूँ
बोलो, फिर मैं क्या करूँ

सोचा क्यों ना नेता बनते, ये भी देश की सेवा करते......
देश का फिर इतिहास उठाया, दल महान वहां एक को पाया
बहुत बड़ा इतिहास था उसका, सानी नहीं कोई अब तक जिसका

हम दल के कार्यालय आये, वहां नेता एक बैठे पाये
हम सम्मुख उनके मुस्काये, सभी प्रमाण-पत्र दिखलाये.....

नेता जी ने हाथ हिलाया, कुर्सी पर हमको बिठलाया
कहा बड़े हो प्रतिभावान, रहते हो तुम किस स्थान....?
हमने रेसिडेंस बताया
नेताजी ने सिर खुजलाया
और हमें नज़दीक बुलाया........
तुम्हारे आस-पास, भाई मुद्दे बड़े हैं ख़ास......
पास के चौराहे पर
कालिज के द्वारे पर
गांधीजी की मूर्ति खड़ी है, गांधीजी की मूर्ति खड़ी
उस पर काफी धूल चढ़ी है....
पास श्रमिक बस्ती में जाओ, उनसे बोलो धूल हटाओ........

राजनीति का भूत सवार, हम पहुंचे श्रमिकों के द्वार
हमने अपनी बात सुनाई, श्रमिकों ने ऑंखें दिखलाईं
गाँधी होगा अपने घर का, क्या करना है हमें ससुर का.......?
गाली सुनकर गुस्सा आया, मैंने घूंसा एक जमाया
उसने फिर आवाज लगायी, बस्ती डंडे लेकर आयी
फिर विवेक था हममें जागा, मैं वहां से फिर सरपट भागा......
और मैं क्या करूँ
क्या डंडों से मरुँ
फिर मैं क्या करूँ 
बोलो, फिर मैं क्या करूँ

चलो सिविल में सरकारी नौकरी में आ गए........और सोचा


अब भैया हम कुछ ना करेंगे
बस इश्वर का ध्यान धरेंगे
घर में पंडित जी को बुलाया 
गृह-शुद्धि का हवन कराया
साठ हज़ार खर्च में आया
माला और आसन फिर लाया
बैठ के इश्वर ध्यान लगाया
बच्चे सहमे और फिर रोये
बैठे-बैठे पापा सोये
पत्नी गृह-खर्चे को झींकी
चाय मिल रही अब तो फीकी........(पैसे सब पंडित जी ने गृह-शुद्धि में खर्च किये)
हमने अपना बैंक टटोला
वहां बने थे गोला-गोला
मन में सोचा हार ना मानो.......  
GPF से रकम निकालो
GPF की अर्जी भेजी
गृह खर्चे को पैसे दो जी
साहब ने जब अर्जी देखी, कड़ी नज़र फिर हम पर फैंकी
गृह खर्चे को फंड ना  मिलता, शादी-ब्याह के लिए निकलता
फिर मैं क्या करूँ
क्या झूठा ब्याह करूँ
या भूंखा फिर मरुँ
फिर मैं क्या करूँ
बोलो फिर मैं क्या करूँ  


खैर चलो...........


ब्याज पे लेकर खर्च चलाया 
'महादेव' का उत्सव आया 
थाल सजाकर मंदिर पहुंचा, भक्तों के मेले ने भींचा
छ: घंटे लाइन में बीते, पूजा बिन पानी नहीं पीते
इतने में एक गाडी आई, और कुछ कुर्सी पड़ी दिखाई
गाडी से VIP उतरे, डटकर वो कुर्सियों पे पसरे
पंडा आया...........मुस्काया.........हाथ जोड़कर  सिर को झुकाया.......
आओ साहब, पीछे से अब.........(पिछले दरवाजे से)
पूजा कर लो जाओ घर तब.............
मैं चकराया......ओ भाया.......क्या न्योता देकर शिव ने बुलाया
सोच-सोच कर मैं भटका, और सारा जल लोटे का गटका
और मैं क्या करूँ
क्या प्यासा मैं मरुँ
या चकरा के गिरुं

फिर मैं क्या करूँ
बोलो फिर मैं क्या करूँ  
(कवि अशोक कश्यप)

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