दोहे : नए ज़माने के ... .....
परियों की जादू छड़ी, नहीं रही अब दूर
कम्प्यूटर विज्ञान को, कहते रहो हज़ूर
मंगल बोला चंद्रमा, तुझमे अब कुछ नाय
अमरीका की हसीना, मुझसे तोली जाय
मूरख मन में मानता, माया का सिर मोर
मगर यह समझा नहीं, गिद्ध गए किस ओर
वो कहता वो कौन है, मैं कहता वो फोन
उंगली पर है नचाता, खुद हो जाये मौन
सस्ते हैं इंसान अब, महंगे आदमखोर
इन्हें बचाने के लिए, सभी मचाते शोर
बैठा-बैठा नेट पर , बना रहा है फ्रेंड
माँ-बापू का हो गया, झुग्गी में दी-एंड
अब कैसी है संस्कृति, अब कैसे संस्कार
बेटी कहती बाप से, ये बॉयफ्रेंड है यार
भावहीन चेहरे लिए, घूम रहा संसार
कहाँ हमें ले जा रही, भौतिकता रफ्फ्तार
(कवि अशोक कश्यप)
परियों की जादू छड़ी, नहीं रही अब दूर
कम्प्यूटर विज्ञान को, कहते रहो हज़ूर
मंगल बोला चंद्रमा, तुझमे अब कुछ नाय
अमरीका की हसीना, मुझसे तोली जाय
मूरख मन में मानता, माया का सिर मोर
मगर यह समझा नहीं, गिद्ध गए किस ओर
वो कहता वो कौन है, मैं कहता वो फोन
उंगली पर है नचाता, खुद हो जाये मौन
सस्ते हैं इंसान अब, महंगे आदमखोर
इन्हें बचाने के लिए, सभी मचाते शोर
बैठा-बैठा नेट पर , बना रहा है फ्रेंड
माँ-बापू का हो गया, झुग्गी में दी-एंड
अब कैसी है संस्कृति, अब कैसे संस्कार
बेटी कहती बाप से, ये बॉयफ्रेंड है यार
भावहीन चेहरे लिए, घूम रहा संसार
कहाँ हमें ले जा रही, भौतिकता रफ्फ्तार
(कवि अशोक कश्यप)
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