दोस्तों, भारतीय दर्शन और आध्यात्म सदियों से कहता रहा है कि कण-कण में इश्वर हैं। आज सभी न्यूज चेंनल इटली की 27 किलोमीटर लम्बी सर्न मशीन की 'ईश्वरीय तत्व' की खोज की चर्चा कर रहे हैं। भारतीय दर्शन कर्म फल का भी हिमायती है। इसी को लेकर एक कविता है..........
 
स्वार्थी संसार:

दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला
इसके लिए कट जाये चाहे अपनों का गला
दुनियां में हर ज़हन .....................

अपने लिए सपने सजाये आसमान के
सपनों में आगे-पीछे भागे गुलिस्तान के
भगने में अगर चोट लगे उसके बदन पर
राहों से कोई फूल तोड़े मले चुभन पर
क्या फूल का अरमान कोई बाकी नहीं है....?
ये फूल से पूंछा, तो बोला मांफी नहीं है
अनसुनी करके फूल की वो आगे हो चला
दुनियां में हर ज़हन..........

रस्ते में फूल फैक कर मस्ती में खो गया
उस फूल का रस-पान करने बिच्छू आ गया
 दोबारा वही शख्स, जब उस राह से गुज़रा
उस फूल पर ही पैर पड़ा बिच्छू डंस गया
बिच्छू के डंक का पांव में घाव हो गया
इलाज़ सारे कर लिए ना ठीक वो हुआ
थक कर हकीम को पांव वो काटना पड़ा

दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला
इसके लिए कट जाये चाहे अपनों का गला
दुनियां में हर ज़हन .....................
(कवि अशोक कश्यप )


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