दोस्तों, बहुत पहले, मेरे अपने संपर्क में आये कुछ लोगों की लापरवाही, लालच और मक्कारी को देखकर, घायल मन कह उठा था........
कल्पना लोक:
एक जहां हो ऐसा,
भाई एक जहां हो ऐसा
जहाँ सत्य बोलते हो सब जीव
झूंठ की हो कमज़ोर नींव
जहाँ एक अजूबा धोखा हो
ईमान का रंग जहाँ चोखा हो
एक जहां हो ऐसा,
भाई एक जहां हो ऐसा
जहाँ मेहनतकस इंसान बसें
मंजिल पाने को कमर कसें
अपने बल पर सब काम करें
कोई दु:खी होय तो धीर धरें
एक जहां हो ऐसा,
भाई एक जहां हो ऐसा
जहाँ क्रोध नाम की चीज़ ना हो
लालच का कोई बीज ना हो
अधिकार सभी एक रहें
हर उम्र के बन्दे नेक रहें
एक जहां हो ऐसा,
भाई एक जहां हो ऐसा
जहाँ भ्रष्टाचार हो दर किनार
और शिष्टाचार की हो भरमार
व्यभिचार जहाँ पर घ्रणित हो
धीरज पग-पग पर वर्णित हो
एक जहां हो ऐसा,
भाई एक जहां हो ऐसा
(कवि अशोक कश्यप)
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