दोस्तों नमस्कार,
आपको ये बताते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि हमारे कार्यालय 'भारत मौसम विज्ञान विभाग' की गृह पत्रिका 'मौसम मंजूषा' को, ''आशीर्वाद'' संस्था तथा ''मुंबई दूरदर्शन'' ने अपने 22 वे राजभाषा पुरस्कार समारोह 2013 में ''श्रेष्ठ गृह पत्रिका'' कहकर पुरस्कृत किया है। 'मौसम मंजूषा की संपादक 'भारत मौसम विज्ञान विभाग' की वरिष्ठ हिंदी अधिकारी, सुश्री रेवा शर्मा हैं और सह संपादक हिंदी अधिकारी, श्रीमती सरिता जोशी हैं। अच्छी बात ये है कि इस पत्रिका में मेरा भी एक वैज्ञानिक लेख ''विचित्र किन्तु सत्य'' प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है। इस स्पर्धा में 25 सरकारी पत्रिकाएं नामित थीं।
(कवि अशोक कश्यप)
विचित्र किन्तु सत्य, अलबर्ट आइन्स्टीन:


बीसवी सदी के महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टीन, जिन्हें १९२१ का नोबेल पुरस्कार मिला था, अपनी विचित्र खोजों के लिए जाने जाते हैं |
अलबर्ट आइन्स्टीन ने अन्तरिक्ष के बारे में बहुत कठिन परिश्रम किया था | उनकी एक खोज बड़ी गजब की थी, काफी दिनों तक उन्होंने बदनामी के डर से उसे लोगों को नहीं बताया | यह सोचकर कि लोग उनको पागल कहने लगे |
चिर योवन संभव है:
अलबर्ट आइन्स्टीन का कहना था, की जिस क्षण तुम पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकल जाते हो तुम्हारी उम्र बढ़नी बंद हो जाती है | उनका कहना था की हमारी उम्र शरीर पर पड़ने वाले दवाब / खिचाव के कारण  बढती है, जोकि पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण  हमारे ऊपर लगता है | जमीं लगातार हमें खींच रही है और हम उस खिचाव से लड़ रहे हैं | इसी खीचा-तानी में हमारी अधिकाँश उर्जा नष्ट हो जाती है, और हमारी उम्र बढाती है | उनका कहना था की यदि तुम पृथ्वी छोड़कर किसी दूसरे ग्रह पर जाओ, और उस समय तुम्हारी उम्र ३० वर्ष की है, और उस ग्रह तक जाने में तुमको ३० वर्ष लगते है, फिर उस ग्रह से वापिस पृथ्वी पर आने में ३० वर्ष लगते हैं, तो उस समय पृथ्वी पर तुम्हारे सभी संगी साथी ९० वर्ष के हो चुके होंगे और हो सकता है की कुछ तो मर भी चुके हों परन्तु तुम्हारी उम्र ३० वर्ष ही रहेगी |

अलबर्ट आइन्स्टीन ने  कहा  था  की  ऐसी  अनुभूति  ध्यान  या  योग  के  द्वारा  भी उत्पन्न  की जा सकती है |  अलबर्ट आइन्स्टीन की इस बात से भारतीय आध्यात्म की उस अवधारणा को बल मिलता है जिसमे कहा जाता है की ऋषि-मुनियों की उम्र हज़ारों वर्ष की होती थी | कहा जाता है कि ऋषि-मुनि समाधी ले लेते थे जिससे उनकी उम्र बढ़नी बंद हो जाती थी । आज के समय के महान संत ओशो ने भी इस बात का समर्थन किया था की ध्यान या योग के द्वारा भी उम्र बढ़ सकती है |
समय की रफ़्तार भी कम या ज्यादा हो सकती है:
सैकड़ों वर्ष पहले सर आइजक न्यूटन की अवधारणा थी की समय और अन्तरिक्ष अबाधित हैं | इन दोनों पर किसी भी घटना या चीज का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है | सन 1900 तक यही माना जाता रहा 
मगर बीसवीं सदी में अलबर्ट आइन्स्टीन ने अन्तरिक्ष और समय के बारे में दो महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए |
पहला यह की ब्रहमांड में किसी भी ग्रह या पिंड का गुरुत्वाकर्षण उसके इर्द-गिर्द के समय और अन्तरिक्ष के रूप और आकर को विकृत कर देता है |
दूसरा यह की अपनी धुरी पर घूमता हुआ कोई भी ग्रह या पिंड अपने साथ-साथ  अपने आस-पास के अन्तरिक्ष और समय को भी खींचता हुआ चलता है | इसके लिए उन्होंने एक बड़ा ही दिलचस्प उदहारण दिया |

शहद में डूबी पृथ्वी:



अलबर्ट आइन्स्टीन ने कि कल्पना करें की पृथ्वी शहद में डूबी है....अब अगर यह घूमेगी तो अपने आस-पास के शहद को भी लेकर चलेगी |
अलबर्ट आइन्स्टीन के इन सिद्धांतों की पड़ताल करने के लिएसन 2004 में  नासा ने अन्तरिक्ष में भेजे गए ग्रेविटी प्रोब बी यानि जीबीपी परिक्षण के तहत बहुत ही सूक्षमता वाले चार जयरोस्कोप जोकि पिंग-पोंग की गेंद की नाप और आकर के थे | को एक सितारे की तरफ लक्षित करके पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया गया | अब अगर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का समय और अन्तरिक्ष पर कोई असर नही पड़ता है तो इन जयरोस्कोपों पर भी कोई असर नहीं पड़ता | और  ये हमेशा उसी दिशा में लक्षित रहते | परन्तु ऐसा नहीं हुआ | कुछ समय बाद इन जयरोस्कोपों की दिशा में थोडा मगर नापा जा सकने वाला परिवर्तन देखने को मिला | इससे अलबर्ट आइन्स्टीन की ध|रना की पुष्ठी हुई |

प्रकाश की किरण पर सवार आइन्स्टीन:
अलबर्ट आइन्स्टीन ने सन 1905 में कहा था की यदि मैं प्रकाश की किरण पर सवार हो जाऊं तो मैं ब्रहमांड में किसी भी स्थान पर ठीक उसी समय पहुँच जाऊंगा जिस समय कि  मैं चला था | उन्होंने गणितीय विवेचन से इसे सिद्ध करके भी दिखाया कि किसी भी वास्तु के प्रकाश की गति से चलने पर समय शून्य हो जाता है प्रकाश की गति से ज्यादा कोई गति नहीं हो सकती अगर हुई तो समय ऋणात्मक हो जायेगा यानि समय भूतकाल का हो जायेगा । यह उनकी बहुत ही ज्यादा महत्वपूरण खोज थी इसी पर आधुनिक भौतिकी टिकी हुई है | इसी को सापेक्षता के सिद्धांत का नाम दिया गाया है |
इटली की ग्रेन सांसो ने पिछले वर्ष ये दावा किया था की न्यूट्रिनो नाम के कण जो परमाणु के अन्दर भी होते हैं औए इनकी वर्षा अन्तरिक्ष से हर समय होती रहती है की गति प्रकाश की गति से भी ज्यादा तेज होती है | इस खोज ने पुरे संसार में सनसनी फैला दी थी | मगर बाद में पता चला कि मशीन के कुछ कनेक्शनों के गलत जुड़ जाने के कारण  ऐसा प्रतीत हो रहा था | बहरहाल अगर ऐसा हुआ तो विज्ञान जगत के कई सिद्धांत उलट जायेंगे जो की इसी पर आधारित हैं |
उर्जा ही पदार्थ है:

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अलबर्ट आइन्स्टीन ने बताया की सभी पदार्थ उर्जा में बदले जा सकते हैं और सभी प्रकार की उर्जा को पदार्थ में बदला जा सकता है | इसके लिए उन्होंने E=MC2 का सूत्र दिया जहाँ E  उर्जा है, M द्रव्यमान है, C प्रकाश का वेग है और २ square में है | अलबर्ट आइन्स्टीन ने बताया की समय-काल और प्रकाश की चाल ये तीन आधार स्तम्भ है सृष्टि या ब्रह्माण्ड के,  जिन पर ये टिके हुए हैं | उन्होंने बताया की प्रकाश की गति से ज्यादा किसी भी चीज की गति नहीं हो सकती और अगर हुई तो समय ऋणात्मक हो जायेगा यानि समय भूतकाल का हो जायेगा जोकि असंभव है | यहाँ मैं ये बता दूँ की भारतीय आध्यात्म भी सृष्टि के करता-धरता तीन देवताओं  ब्रह्मा-विष्णु-महेश को ही बताते हैं | और भारतीय आध्यात्म ये भी कहता है की जगत जननी शक्ति स्वरूपा है | यानी पावर और उर्जा एक ही चीज है, जिसे भारत में हिन्दू धर्म जगत जननी माँ भवानी कहता है । भारतीय आध्यात्म में ब्रह्मा को रचनाकार, विष्णु को पालनहार और महेश को संहारक बताया गया है | भारतीय आध्यात्म में,  माँ भवानी को शक्ति का प्रतिक माना गया है | भारतीय आध्यात्म कहता है की माँ भवानी के द्वारा ही हम सब का अस्तित्व है,  जिसे हम उर्जा कह रहे हैं | यहाँ समय TIME को संहारक कह सकते हैं क्योंकि समय आने पर सबका अंत होता ही है | काल SPACE को रचनाकार कह सकते हैं क्योकि विज्ञान भी ये मानता है की जीवनदायी कण न्यूट्रिनो space से आते हैं  और प्रकाश को पालनहार कहा जा सकता है क्योकि Light energy से ही पौधे कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करके जीवधारियों को भोजन उपलब्ध कर|ते है | इस प्रकार देखा जाये तो भारतीय आध्यात्म का इशारा भी TIME - SPACE और लाइट की तरफ ही है ।

अलबर्ट आइन्स्टीन की इश्वर के बारे में सोच:



अलबर्ट आइन्स्टीन के अनुसार इश्वर जैसी कोई निजी सत्ता नहीं है | ये सृष्टि एक मिली-जुली कोशिश का नतीजा है | सूक्ष्म से सूक्ष्म कण ने भी नियमबद्ध होकर बेहद तार्किक ढंग से एक साथ सम्मलित होकर इस अनंत सृष्टि का निर्माण करने में अपना पुरजोर योगदान दिया है | ये दुनिया इन्हीं मिली-जुली कोशिशों और कुछ प्राकृतिक नियमों का उदघोष भर है | जिसे आप हर रोज देखकर और छूकर महसूस कर सकते हैं | वैज्ञानिक शोध इस आधार  पर होते हैं की हमारे आस-पास और इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी घटित होता है | उसके लिए प्राकृतिक नियम जिम्मेदार होते हैं | यहाँ तक की हमारे अपने क्रिया-कलाप भी इन्हीं नियमों के द्वारा तय होते हैं | और प्रकृति में जो नियम एक छोटे से कण पर लागु होते हैं ठीक वो ही नियम किसी बड़े गृह या सितारे पर भी लागू होते है | आइन्स्टीन बोद्ध धर्म से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और कहते थे की आने वाले समय में लोग किसी भी धर्म को नहीं मानेंगे | फिर एक नया धर्म उभरेगा जिसे कास्मिक रिलिजन कहा जायेगा और वो बोद्ध धर्म से मिलता-झूलता ही होगा |
अलबर्ट आइन्स्टीन के इन विचारों से भी भारतीय आध्यात्म को बल मिलाता है|  हमारे धर्म-ग्रंथों में कहा गया है की यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे अर्थात जो गुण एक छोटे से कण में हैं वो ही गुण सारे ब्रह्माण्ड में हैं | इसके आलावा भारतीय आध्यात्म कहता है की सब-कुछ पूर्व निर्धारित होता है जब-जब जो-जो होना है, तब-तब वो-वो होता है | और बोध धर्म भी तो हिन्दू धर्म जैसा ही है |
 समाप्त 


अशोक कुमार वै .सहा.
सतर्कता अनुभाग उ.वा. उ.नई दिल्ली 

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