दूसरो को धोखा देना जहाँ पाप है, वही खुद के लिए जीना सबसे बड़ा पुन्य है.........

बेनाम:

मस्तिष्क है खाली मेरा, मैं खुद को क्या लिखूं 
छोटी सी मेरी भूल थी, के फलसफा लिखूं 

अपना ही तन्-बदन जला है अपनों के लिए 
वो जिए थे अपने लिए, हम उनको हैं जिए 
अपनी किसी भी बात को ना अहमियत है दी 
ना सोचा किसने क्या कहा बस कह दिया हाँ जी 

सोचा था कई बार कहीं ये धोखा तो नहीं....? 
हम जीते हैं उनके लिए, वो हमको क्यों नहीं....?
वो अपने हैं तो कभी अपने पास तो आयें....? 
हम अन्धकार में फंसे वो दीप दिखलायें ....?

दीपक तो है उनपर परन्तु उनके ही लिए 
हम भटक ही रहे हैं, वो मंजिल से जा मिले
हम भटक ही रहे हैं, वो मंजिल से जा मिले.........
( कवी अशोक कश्यप)

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