दोस्तों, सन 1996 की लिखी ये कविता है.........
अबूझ पहेली:
कल मिले अबूझ पहेली से 
सपनों की सखी-सहेली से 

निष्कपट कल एक मीत मिला 
चेहरा था जिसका खिला-खिला 
यूँ लगा कि जैसे कमल कोई हो 
वर्षा के जल में धुला-धुला 

आँखों में थी वो शर्मो-हया 
नहीं होती शब्दों में जो बयां 
देखा तो मन हुआ भाव-विहल 
स्नेह उमड़ता यूँ उसपर 

हर बात में इक अपनापन था 
जैसे की लौटा बचपन था 
बचपन का साथ अब रहा कहाँ 
अपना सा नहीं कोई और यहाँ 
अपना सा नहीं कोई और यहाँ.......
 (कवि अशोक कश्यप)

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