दोस्तों, ये कविता बहुत पहले लिखी गई थी.......

दीवानगी: 

ये दीवानगी है, दीवानगी 
अपनापन लिए-सी बेगानगी 

खोई-खोई सी नज़र आये 
जाना हो इधर, वो उधर जाये 
दिलबर से नज़र जब टकराए 
वो नजाए अंदाजी दर्शाए 

इस प्यार को अब मैं क्या बोलूं 
इस अदा पे मैं क्या मुहं खोलूं 
ये दीवानगी है  दीवानगी
अपनापन भरी-सी बेगानगी

राहों में कहीं जो मिल जाये 
नीची नज़रें वो किये जाए 
चोरी से देखे, शर्माए 
बे बात वो यूँ ही खिलखिलाए

इस प्यार को अब मैं क्या बोलूं
इस अदा पे मैं क्या मुहं खोलूं
ये दीवानगी है  दीवानगी
अपनापन भरी-सी बेगानगी

अनदेखा करूँ तो परेशान
और देखा करूँ तो परेशान
पर छोड़ती जाये वो निशान
बढ़ती है प्यार की जिनसे शान

इस प्यार को अब मैं क्या बोलूं
इस अदा पे मैं क्या मुहं खोलूं
ये दीवानगी है  दीवानगी
अपनापन भरी-सी बेगानगी
 (कवि अशोक कश्यप)

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