दोस्तों, ये भजन मैंने सन 1990 में लिखा था। मैं गाँव में अपने कमरे में पढाई कर रहा था। परन्तु दूसरे घर से बहुत तेज़ आवाज़े आ रही थी, भजन-कीर्तन की। असल में ये लोग बहुत बड़े मक्कार, बेईमान और ठगिया थे, सभी गाँव वाले इस बात को जानते थे। मगर कुछ कहते नहीं थे.........

भला-बुरा:

बुराई आप में मानव ज़रा तू देख ध्यान से
भला हूँ मैं, भला हूँ मैं बखाने मत ज़ुबान से

अकेला था, अकेला है और आगे भी अकेला तू
ये मेरा है, वो मेरा है ये क्यों कहता है शान से

बुराई आप में मानव ज़रा तू देख ध्यान से

करेगा तू, भरेगा तू और सब-कुछ यहीं पर है
तो क्यों बिगड़े है दुनिया पे निकलता क्यों है म्यान से

बुराई आप में मानव ज़रा तू देख ध्यान से

ये दुनिया है, ये दुनिया है ये सब-कुछ, देख-सुनती है
चला-चल सच्ची राह पर, तू मत ना डर थकान से

बुराई आप में मानव ज़रा तू देख ध्यान से
भला हूँ मैं, भला हूँ मैं बखाने मत ज़ुबान से
(कवि अशोक कश्यप)

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