दोस्तों, आज हम सभी में भौतिक साधनों को ज्यादा से ज्यादा पाने की होड़ सी लगी हुई है, और इन साधनों को पाने के लिए हम किसी भी हद तक गिरने को तैयार रहते है | इसी हारी हुई जीत को दर्शाता है मेरा यह नया गीत, इसमें तीन अंतरे अभी और हैं, अगर आपको पसंद आएगा तो और पोस्ट करूँगा......धन्यवाद |

गीत: ज़िन्दगी की जीत:

सूरज की छाँव में, तारों की धूप में
जीत ली है हमने ज़िन्दगी, अंधियारे रूप में

समंदर को नदी में आना पड़ा
दुखड़ा सुनाना पड़ा, हाय पछताना पड़ा
हकीकत को मिथ्या बताना पड़ा
सच को छुपाना पड़ा, हाय शर्माना पड़ा
शहरों के गाँव में, गाँव कुरूप में
जीत ली है हमने ज़िन्दगी, अंधियारे रूप में

सूरज की छाँव में, तारों की धूप में
जीत ली है हमने ज़िन्दगी अंधियारे रूप में
(कवि अशोक कश्यप)
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