आज और कल:
आज जो है कल भी था वो रहेगा जब तक जहां है
प्रकृति निर्मित सभी ये भावनाएं, वर्जनाएं

ब्रह्मा सर्जक, विष्णु पालक, शिव हैं संहारक धरा के
आते हैं सब एक गुण दुनिया में इश्वर से भरा के
किसी भी शय का यहाँ कोई दूसरा सानी नहीं है
कौन है जिसमें हया का शर्म का पानी नहीं है
रौशनी वैसी मिलेगी जैसा हम दीया जलाएं
प्रकृति निर्मित सभी ये भावनाएं, वर्जनाएं

हम कहें सिरमोर खुद को वो कहे मैं ही हूँ तुझमें
हम कहें हम चाँद पर हैं वो कहे अरबों हैं मुझमें
बहती नदिया, रमता साधू मैंने ही डाला ये जादू
उमड़कर बरखा की ऋतु में बोलता है बोल भोंदू
राग काफी गा रहा है देखकर काली घटायें
प्रकृति निर्मित सभी ये भावनाएं, वर्जनाएं  
   (कवि अशोक कश्यप)
 

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