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कवि अशोक कश्यप
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August 02, 2011
उजड़े चमन मै आईं बहारें है आपसे,
टूटे दिलों की भरीं दरारें हैं आपसे
इस महफ़िल मै पहले ये सुर-ताल नहीं थी
जो सुन रहे हैं हम वो मल्हारें है आपसे
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