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कवि अशोक कश्यप
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August 13, 2011
समय गुज़रा वो बेसमय का सा सैलाब गुज़रा
अब उसके माथे का सरताज सुर्ख बिंदा हूँ
मैं किसी बात पर इतना अधिक शर्मिंदा हूँ
बड़ी हैरत में हूँ कि अभी तलक जिंदा हूँ
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