दोस्तों, एक फेसबुक फ्रेंड की फरमाइश पर ये 'पोलियो' नाम का गीत पोस्ट कर रहा हूँ । ये गीत एक सामाजिक संस्था 'शिवरंजिनी कलाकुंज' के लिए सन 2002 लिखा था...........

पोलियो:

पोलियो है एक अभिशाप अपने देश पर
इसकी रह ना पाए अब छाप अपने देश पर
आओ हम प्रण करें, इससे घोर रण करें
शिशु को पिलायें दवा समय पर निर्देश पर

पोलियो है एक अभिशाप अपने देश पर
इसकी रह ना पाए अब छाप अपने देश पर 

अभी तक अन्जान बनके इसको हमने झेला है
यह रोग लग गया तो ज़िन्दगी झमेला है
अब तो यारो जाग जाओ, अब ना इसे बढ़ावा दो
मुफ्त में दवा पिलाओ नहीं कहीं चढ़ावा दो
दवा से ही रोक लगे पोलियो प्रवेश पर
पोलियो है एक अभिशाप अपने देश पर ......

आज जो आलस करोगे कल पछताओगे
चल ना पायेगा बच्चा उससे शर्माओगे
बच्चे, अब मन की करें खाएं-पियें और हँसें
पढ़ें-लिखें आगे बढ़ें शिकंजा ना इनपे कसें
खर्च करो इनपर तुम ना करो निवेश पर
पोलियो है एक अभिशाप अपने देश पर ......

पोलियो है एक अभिशाप अपने देश पर
इसकी रह ना पाए अब छाप अपने देश पर
(कवि अशोक कश्यप)

 

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