ज़िन्दगी मुस्कराएगी:

ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी
हर झरोखे से महक आएगी

नहीं छेड़ो हया का राग कोई
चांदनी में दुल्हन नहाएगी

ज़रा खोलो तो पंख हिम्मत के
ये ज़मीं छोटी नज़र आएगी

सोचता हूँ  के आज भिढ़ जाऊ
मौत तो वैसे भी आएगी ...?

आग है हर तरफ महंगाई की
क्या वह खाएगी-पकाएगी...?

सहे सिन्धु सहारा सरिता का
यहाँ प्रलय जरूरी आएगी

शेर, चीते, सियार हँसते हैं
गाय कोई इधर से आएगी

आदमी कुछ भी कर नहीं सकता
जब ये कुदरत सितम ढहायेगी

क़र्ज़ थोड़ा सा और लेता हूँ
आज ससुराल बेटी जायेगी

आज फिर पीके बापू आया है
आई आटा उधार लाएगी

आज मांजी के पैर दाबे थे
क्या ये तरकीब रंग लाएगी ...?

ज़िन्दगी जब भी मुस्कराएगी
हर झरोखे से महक आएगी
(कवि अशोक कश्यप)



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