दोस्तों, महाभारत युद्ध के बाद जब भगवान् श्री कृष्ण 'द्वारिका' पहुंचे तो देखा की उनके वंसज बहुत ही उद्द्यंड  और विलासी हो चुके है। उन्होंने विचार परिवर्तन के लिए सभी को 'प्रभास तीरथ' करने की सलाह दी। प्रभास में जाकर दो गुट बन गए लड़ाई हुई घास से और  'गांधारी' और ऋषियों का श्राप रंग लाया सभी आपस में लड़कर मर गए..............

दिल और दिमाग जैसे पानी और आग:

दिल की भाषा समझो जानो
फिर अपने को पंडित मानो

दिल दिमाग हरेक व्यक्ति में
शामिल हैं हर अभिव्यक्ति में
दिल प्रकृति के आस-पास है
यहाँ ब्रह्म सृजन का वास है
दिल के तार जुड़े हैं जग से
जग से क्या जुड़ जाएँ रब से
उन तारों को कुछ पहचानो
फिर अपने को पंडित मानो

दिल बोले और दिल से बोले
परत-दरपरत दिल की खोले
जीव-अजीव सभी सुन लेते
अन्दर कुछ अपने बुन लेते
पत्थर के भगवान् भी सुनते
और अदृशय हैवान भी सुनते
हम सीधों की मानो स्यानो
फिर अपने को पंडित मानो

दिमाग  तो प्रभास घासी है
ऋषि उपहास श्राप वासी है
यदुवंशियों का ये नाशी है
ना काबा और ना काशी है
'कुरूक्षेत्र ' इसका साक्षी है
ये तो बहुत महत्वकांक्षी है
तीर-कमान इसी पर तानो
फिर अपने को पंडित मानो

दिल की भाषा समझो जानो
फिर अपने को पंडित मानो
(कवि अशोक कश्यप)

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