तिरिया:

तिरिया तू तेरह तरह, बदले अपने रंग
मौलिक रंग तो तीन हैं, दस रंग तेरे अंग

तू कोमल तू कामिनी, तू फुलवा तू फाग
तेरे बिन इस जगत में, क्या जीवन में राग

तू प्रकृति है पाक सी, पावन है हर रंग
रचना रचने के लिए, आवश्यक तेरा संग

तेरह रंग तेरे भले , भले ये करते काम
हर रंग तेरा पुरुष को कुछ देता है नाम

मौलिक रंगों से मिला तू अंगों की आभ
जैसा जो कोई चाहता वैसा भाव-प्रभाव

तेरे भाव-प्रभाव में, प्रकृति करे निवास
प्रकृति का तो रहेगा, पुरुष हमेशा दास

दानव, देव, दुराचरी, या मनुष्य की जात
तिरिया से कोई ना बचा, यही पते की बात

जिसने जो माँगा दिया, पर एक लगाई शर्त
मेरे तेरह मुखौटे, पर तुझ पर ना हो पर्त 
(कवि अशोक कश्यप)                


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