चंदा से बढकर चंदा:

पूर्णिमा के चंद्रमा पर यूँ ही जब नज़र पड़ी
दिल से ये आवाज़ आई देखूं उसको हर घड़ी
कुछ समय के बाद लगा चाँद तो मुस्का रहा
शायद अपने रूप पर वो बहुत ही इतरा रहा
घमंडी इतना हुआ क्यों चाँद ये बतला मुझे
तुझसे सुन्दर अपनी चंदा ये नहीं पता तुझे ?
नाम दोनों के ही चन्दा पर बड़ी है भिन्नता
तू युगों से दाग वाला उसमें भारी सौम्यता 
सौम्यता, सोंदर्य का होता है संगम विरल ही
पास जाने पर तू पत्थर वो हमेशा सरल ही----
(कवि अशोक कश्यप)

Comments

बहुत ही बढ़िया



सादर
nayee dunia said…
बहुत बढ़िया
Onkar said…
सुन्दर पंक्तियाँ