छिप गया सूरज जो नज़रें झुका लीं तुमने
उग गया सूरज जो नज़रें उठा लीं तुमने
अब और पैमानों की जरुरत ही किसे है
मस्ती भरी नज़रें जो हमसे मिला लीं तुमने
छिप गया सूरज जो नज़रें झुका लीं तुमने
उग गया सूरज जो नज़रें उठा लीं तुमने
(कवि अशोक कश्यप)
उग गया सूरज जो नज़रें उठा लीं तुमने
अब और पैमानों की जरुरत ही किसे है
मस्ती भरी नज़रें जो हमसे मिला लीं तुमने
छिप गया सूरज जो नज़रें झुका लीं तुमने
उग गया सूरज जो नज़रें उठा लीं तुमने
(कवि अशोक कश्यप)
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