पांचाली ने व्यंग का, ऐसा छोड़ा बाण
स्वयं हो गई निपूती, कितनों के गए प्राण

अंधे का अंधा कहा, करी करारी चोट
चीर हरण पर मांगती, श्रीकृष्ण से ओट

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