दोस्तों,  कारगिल युद्ध से थोडा पहले जब भारत-पाकिस्तान के बीच माहौल थोडा गरमा गया था, तो एक बच्चे की जुबान से मैंने सुना ......  मुझे फ़ौज में जाना है और पकिस्तान को सबक सिखाना है .........मेरे दिमाग में उसी समय एक गीत लिखने का विचार आया। ये गीत 2009 में प्रकाशित मेरी किताब 'जीवन के रंग' में प्रकाशित हो चुका है, मगर आज दिनांक 23-11-2012 को ये गीत सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्र 'महामेधा' में प्रकाशित हुआ है .........

फ़ौज में जाना है:

के माँ मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा
पाक को सबक सिखाना है, ये कहता है मनवा मेरा
के माँ मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा

वो युद्ध की धमकी देता है ......
क्लिंटन से सहायता लेता है ......
बदले क्या-क्या देता .......?
उसे धूल चाटना है,  ये कहता है मनवा मेरा
के मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा

पंजाब को मैं नहीं छोडूँगा
तिब्बत को चीन से ले लूँगा
कश्मीर में अमन बना दूंगा
और करके दिखाना है, ये कहता है मनवा मेरा
के मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा

एक बार जो गलती खाई थी
आपस में करी लड़ाई थी
भारत माँ हुई पराई थी
उसे नहीं दोहराना है, ये कहता है मनवा मेरा
के मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा

पाक को सबक सिखाना है, ये कहता है मनवा मेरा
के माँ मुझे फ़ौज में जाना है, ये कहता है मनवा मेरा
(कवि अशोक कश्यप)



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