शीश गगन का झुक जाता है
वेग पवन का रुक जाता है
जब खिलती वो कली जुही की
इंद्र सिंहासन चुक जाता है

मोर पंख ज्यों कृष्ण के सिर पर
जीत सूर्य की ज्यों हो तिमिर पर
मम हृदय पर राज वो करती
मन अमृत गंगाजल भारती

कोयल भूल रही है गाना
सुर देवी ने भी पहचाना
मन और वचन अटल रघुकुल से
दशों दिशाओं ने यह माना
(कवि अशोक कश्यप)


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