थूककर जो चाटता  है उसका क्या ईमान है
रेवड़ी अपनों को बांटे उसका क्या ईमान है

चढ़ गया सूली पर अगर देश की खातिर कोई
उसकी रणनीति सवाले उसका क्या ईमान है

आस्तीनी  साँप है जो, सोचता कुछ इस तरह
मुर्ख मुझे पालता है, उसका क्या ईमान है

मैं जो रस्सी फैकता हूँ, भँवर में फंसा है वो
मुझे खींचे, रस्सी नहीं, उसका क्या ईमान है

मुफलिसी में जी रहा था, हाथ थामा रहमकर
अब मुझे जीना सिखाता, उसका क्या ईमान है

शान से वो जी रहा है, हम तो गए जान से
कह रहा ईमान से अब, उसका क्या ईमान है

थूककर जो चाटता  है, उसका क्या ईमान है
रेवड़ी अपनों को बांटे, उसका क्या ईमान है
(कवि अशोक कश्यप)


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