पीछे पड़ी है
दुनिया
सुख सो रही है दुनिया, मैं जाग रहा हूँ
पीछे पड़ी है
दुनिया, मैं भाग रहा हूँ
मैं काम करूँ अपना
करने नहीं देती
मैं नाम करूँ अपना
करने नहीं देती
मैं ध्यान धरूँ अपना
धरने नहीं देती
मैं चाहूँ अगर मरना
मरने नहीं देती
ये बनी है सपेरा, मैं
नाग रहा
हूँ
सुख सो रही है दुनिया
मैं जाग रहा
हूँ
पीछे पड़ी है
दुनिया मैं भाग रहा हूँ
बातें बनाये ऐसी मैं
सोच में पडूं
आखें दिखाये ऐसी जैसे
कि मैं लडूं
कपडे उतारे ऐसे मैं
शर्म से गढूं
तनके खडी है ऐसे कि
पैर मैं पडूं
ये बनी है सफेदी मैं
दाग रहा हूँ
सुख सो रही है दुनिया
मैं जाग रहा
हूँ
पीछे पड़ी है
दुनिया मैं भाग रहा हूँ
मैं बोलता हूं गर कुछ
ये बोलने ना दे
और तौलता हूं गर कुछ
ये तौलने ना दे
गर खोलता हूं भेदों
को खोलने ना दे
ऐसे ही डोलता हूं तो
डोलने ना दे
ये बनी दाल मखनी मैं
साग रहा हूँ
सुख सो रही है दुनिया
मैं जाग रहा
हूँ
पीछे पड़ी है
दुनिया मैं भाग रहा हूँ
(अशोक कश्यप, ज़िंदगी मुस्कुरायेगी, 2021 से)
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