दिल्ली का प्रतिबिम्ब समाचार-पत्र (22-27 जुलाई 2013) में प्रकाशित कविता के कुछ अंश, पूरी कविता में 4 अंतरे हैं ….धन्यवाद

जान है जहान है, हमारी पहचान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है

मेहनतकश हार जाते, पिछड़ घुड़सवार जाते 
यत्न सब बेकार जाते, अपने सभी खार खाते
खुदा की नज़र फिरे, तो सहराँ बागान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है........

मेहरबानी उस खुदा की, हर रवानी उस खुदा की
तय करेगा कर्म तेरा, ह्रदय तेरा, धर्म तेरा
ना समझ खुदा से कम, जो तेरा कदरदान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है........

खुदा है जुदा ना तुमसे, मान जाओ तुम कसम से
सत्य बोलो खुदा खुश है, न्याय तोलो खुदा खुश है
कहते हैं- वो खुश है तो, फिर गधा पहलवान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है........

भला सोचो भला होगा, बुरा सोचो बुरा होगा
गंगाजल ना सुरा होगा, नश्तर ना छुरा होगा
कर्म फल मिलेगा ही, ये विधि का विधान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है........

जान है जहान है हमारी पहचान है
जो खुदा मेहरबान है, जो खुदा मेहरबान है
('जीवन के रंग' पुस्तक 2008 से) 

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