जो तुझको कांटे बवे, उसको बव तू फूल 
पश्चाताप करेगा, उसके मन में चुभेंगे शूल
मन में चुभेंगे शूल, शीश नीचे वो झुकाए
डूब रही हो नैया, उसको पार लगाये

कहे 'कश्यप' कवि राय, मन रखो अपना निर्मल
कालिख लगी आत्मा, क्या धोवे गंगाजल





इस जीवन की पैनी धार, सादा जीवन उच्च विचार
सब बातों पर करो विचार, कैसे ये चलता संसार

प्यार भी प्यारा नहीं जितनी तू प्यारी मुझे
प्यार में रंगकर ही कर दूँ  दुनिया से न्यारी तुझे 

(कवि अशोक कश्यप, जीवन के  पुुुुुुस्तक 2008 से)

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