क्षेत्रीयता, जाति-धर्म और देश:
 
क्षेत्रीयता को छोडो, जाति-मजहब को छोडो 
हम सब हैं हिंद वासी, हिन्दोस्तां को जोड़ो 

कोई धर्म हो दुनियां का, है मर्म सभी का ये
दुःख-दर्द बाँटो सबके, है कर्म सभी का ये
कुछ अच्छे काम करके, फिर धर्म की सोचो तुम
नहीं तो इस जहाँ में, होके रहोगे गुम तुम
आडम्बरों की बेडी को, अब तो यारो तोड़ो
हम सब हैं हिंद वासी, हिन्दोस्तां को जोड़ो
 
हर आदमी का बहता हुआ, खून एकसा  है 
रोते बिलखते चेहरों का, मजबून एकसा है 
हर दुखी दिल से निकली हुई आह एकसी है 
अन्याय सहती आत्मा की डाह एकसी है 
हर स्वार्थी गर्दन को, मिलकर सभी मरोड़ो
हम सब हैं हिंद वासी, हिन्दोस्तां को जोड़ो
 
संसार की हरेक माँ का, प्यार एकसा  है 
हर बहन का भाई को, दुलार एकसा है 
हर पिता चाहता है, परिवार की बुलंदी
फिर धर्म क्यों लगते, ऐतवार की पाबन्दी 
दिलों के जोड़ने को, धर्मों का रुख ही मोड़ो  
हम सब हैं हिंद वासी, हिन्दोस्तां को जोड़ो

क्षेत्रीयता को छोडो, जाति-मजहब को छोडो 
हम सब हैं हिंद वासी, हिन्दोस्तां को जोड़ो 
(कवि अशोक कश्यप)

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