दोस्तों, आज दिनांक 21-08-2012 को, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार-पत्र 'महामेधा' में मेरी सन 2009 में प्रकाशित पुस्तक 'जीवन के रंग' की रचना 'तुम मेरे हो' छपी है .......धन्यवाद
तुम मेरे हो:
आभास तो ये होता है तुम मेरे हो
मगर खुलके कभी अपना मुझे कहा नहीं
तुमने दुनिया में अभी गुल-गुलिस्तां देखे हैं
मेरे जीवन में है काँटों के सिवा कुछ भी नहीं
मैं नहीं चाहता इन अंधेरों को तुम झेलो
तुम मेरे हो:
आभास तो ये होता है तुम मेरे हो
मगर खुलके कभी अपना मुझे कहा नहीं
तुमने दुनिया में अभी गुल-गुलिस्तां देखे हैं
मेरे जीवन में है काँटों के सिवा कुछ भी नहीं
प्यासा जीवन है और पानी नहीं दूर तलक
खाली तरकश है मगर जंग जीतने की ललक
बढ़ रहा हूँ मैं इक झीनी से रोशनी की तरफ
अभी तो ज़मीं अँधेरी है अँधेरा है फलक
मैं नहीं चाहता इन अंधेरों को तुम झेलो
रहो भटकन में अपनी ज़िन्दगी से तुम खेलो
जब इश्वर भर रहा झोली तुम्हारी रत्नों से
मैं क्यों चाहूँ कि कंकरों को तुम मेरे ले लो
(कवि अशोक कश्यप)
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