विदा बेटी करी और अपना घर बुहारते हो
जहाँ खेली वो झूला , पालना उतारते हो

तपी गर्मी में जिस दरख़्त ने राहत दी थी
आज पतझड़ हुआ तो कुल्हाड़ी तलाशते हो
(कवि अशोक कश्यप)

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