कौन हैं, क्यों हैं यहाँ हम, क्या हमारा नाम है
मत ये जानो, मेरी मानो, जीना अपना काम है

सिकंदर से धुरंधर जीये यहाँ मदहोश हो
क्या हुआ जो हर जुबां पर आज भी ये नाम है ?

जो खज़ाना हाथ में लग जाये भी कुबेर का
तो क्या सुबह को कहेगा, बोलता हूँ शाम है ?

साधू-सन्यासी बनें कोई ना मतलब जगत से
रोटी-पानी हँसना-रोना  न हो कोई धाम है ?

कौन हैं, क्यों हैं यहाँ हम, क्या हमारा नाम है
मत ये जानो, मेरी मानो, जीना अपना काम है
(कवि अशोक कश्यप)

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