मुक्तक:
दिखती नहीं सूरत, तो मैं बेचैन रहता हूँ
कहना कुछ और चाहता, कुछ और कहता हूँ
गर मिल गए संयोग से ख्वाबों में कही वो 
अहसानमंद खुदा का, महीनों रहता हूँ
(कवि अशोक कश्यप)




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