दोस्तों, ये कविता/गीत करीब १४ वर्ष पहले लिखी थी और मेरी किताब 'जीवन के रंग' में है, इसे दिनांक २०.०३.२०१२ को राष्ट्रीय दैनिक समाचार-पत्र 'महामेधा' ने प्रकाशित किया है.....
खूबसूरत:
सूरत भी खुबसूरत, सीरत भी खुबसूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
जब नज़र तुझपे पड़ती, फिर हटती ही नहीं है
चाहत निहारने की, फिर घटती ही नहीं है
जब-जब तू बोलती है, मिसरी सी घोलती है
लगता है शब्दों को तू ,पहले मन में तोलती है
कोई अप्सरा सी है तू ,या मंदिरों की मूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
अब तक जो मैंने देखा है, आचरण तुम्हारा
है सबसे बहुत हटके, है सबसे बहुत न्यारा
एहसान किसी का तुम, कोई लेती ही नहीं हो
और कुछ न लेके मुझको, कुछ देती ही रही हो
औरों को हो, नहीं हो, तेरी मुझको है ज़रूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
सम्मान जो देती हो, एहसान है ये मुझपर
मैंने भी जबसे देखा, तबसे नज़र बस तुझपर
यूँ ही कही, कभी भी, तुम मिल ही जाती हो
और मुस्करा के मेरे, तन-मन में समाती हो
शायद खुदा तय करता, मिलने का यूँ मुहूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
सूरत भी खुबसूरत, सीरत भी खुबसूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
(कवि अशोक कश्यप)
खूबसूरत:
सूरत भी खुबसूरत, सीरत भी खुबसूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
जब नज़र तुझपे पड़ती, फिर हटती ही नहीं है
चाहत निहारने की, फिर घटती ही नहीं है
जब-जब तू बोलती है, मिसरी सी घोलती है
लगता है शब्दों को तू ,पहले मन में तोलती है
कोई अप्सरा सी है तू ,या मंदिरों की मूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
अब तक जो मैंने देखा है, आचरण तुम्हारा
है सबसे बहुत हटके, है सबसे बहुत न्यारा
एहसान किसी का तुम, कोई लेती ही नहीं हो
और कुछ न लेके मुझको, कुछ देती ही रही हो
औरों को हो, नहीं हो, तेरी मुझको है ज़रूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
सम्मान जो देती हो, एहसान है ये मुझपर
मैंने भी जबसे देखा, तबसे नज़र बस तुझपर
यूँ ही कही, कभी भी, तुम मिल ही जाती हो
और मुस्करा के मेरे, तन-मन में समाती हो
शायद खुदा तय करता, मिलने का यूँ मुहूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
सूरत भी खुबसूरत, सीरत भी खुबसूरत
ऐसी न कोई होगी, बला की खुबसूरत
(कवि अशोक कश्यप)
Comments