दोहे:
मन को कभी न मारना, चाहे जो हो जाय
मन में ही इश्वर बसा, मरे मौत आ जाय
पत्थर फैके राह में, मस्ती में खो जाय
लोटे जब घर शाम को, उसी से ठोकर खाय
कराह रहा है खाट पर, जीवन की अब शाम
पल-पल मांफी माँगता , बुरे किये थे काम
(कवि अशोक कश्यप)
मन को कभी न मारना, चाहे जो हो जाय
मन में ही इश्वर बसा, मरे मौत आ जाय
पत्थर फैके राह में, मस्ती में खो जाय
लोटे जब घर शाम को, उसी से ठोकर खाय
कराह रहा है खाट पर, जीवन की अब शाम
पल-पल मांफी माँगता , बुरे किये थे काम
(कवि अशोक कश्यप)
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