जोंक

 दोस्तों, मेरी एक कविता की पंक्ति हैं........अपनों से बहुत प्यार करो दिल से जान से / अपनों से मगर रहो ज़रा सावधान से / दुनिया में अभी तक जहाँ फरेब हुआ है / गैरों से हाथ मिलाकर अपनों ने किया है.......दिनांक 2-06-2012 को कुछ ऐसे ही भावों को प्रदर्शित कराती हुई मेरी कविता 'जौंक' प्रकाशित हुई थी......आप मेरी ख़ुशी में शामिल होने तो अच्छा लगेगा।......
जोंक:
प्यार करो खुद से, उद्धार करो खुद का
खुद से खफा रहकर, बेवफा रहकर
कोई वफ़ा नहीं करेगा तुम्हारे साथ
हो जाओगे इस दुनिया में तुम, गुम
अपनों को जिओगे, जीलो
गम के आंसू पिओगे, पीलो
बहा दो अपना खून भी पसीना बनाकर
जला दो अपने अरमान, बिखेर दो अपने सपने
पिला दो अपना खून भी इन इंसानी जोंकों को
जब तक खून रहेगा चूंसती जाएँगी ये इंसानी जोंक
खून पीकर, पेट फुलाकर, नशे में गिर जाएँगी
और जब तक खून की एक बूंद भी रहेगी, तुम्हारे जिस्म में
चिपकी रहेंगी ये जोंक.........
और फिर........और फिर...
छोड़ देंगी मरने को तुम्हें तेज धूप में
तालाब में या कूप में
और तलाशेंगी नया बकरा, जिसमें ज्यादा खून हो
गरम-गरम खून, गाड़ा खून 
क्या हुआ.........?
कुछ नहीं........., तुम मर गए बस........
तुम आये हो इस दुनिया में जीने के लिए
तो जिओ, जी भरके, खाओ-पीओ, जी भरके
और सिखाओ जीना दूसरों को,
मेहनत करके जीना, ईमानदारी से जीना, शुद्ध आचरण के साथ जीना

और यदि तुम इस संसार के मायाजाल में फंसे
प्रकृति के शिकंजे में कसे
तो भी कुछ नहीं खोज पाओगे
प्रकृति नित नई रचना है....
रोज बदलती है प्रकृति.....
तुम कुछ भी नतीजा नहीं निकाल सकते,
प्रकृति से नहीं जीत सकते.....
इसलिए खुद के लिए जिओ,
मत दुखाओ किसी का दिल,
जो जाये उसे जाने दो,
और जो आये उसे कहो, आ मिल...........
(कवि अशोक कश्यप) 
  






  
 
 
 
 

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