जीवन के रंग:
कुछ मत पूंछो इस जीवन का, क्या-क्या रंग है हमने देखा
हो सकता है यह वही हो, कहें जिसे किस्मत का लेखा
चोर को खोर में लेटे देखा, शाह को टाट लपेटे देखा
सात साल के बच्चे को है, झुंटे बर्तन धोते देखा
कुछ मत पूंछो इस जीवन का................
सास को बहू डराए देखा, बेटा नज़र चुराए देखा
मज़बूरी में गलत बहू की, सास बघारे शेखी देखा
कुछ मत पूंछो इस जीवन का.................
गाँव को देखा नगर को देखा, लाचारी की डगर को देखा
ग़ुरबत में लड़की के बाप को घर-घर खाते ठोकर देखा
कुछ मत पूंछो इस जीवन का, क्या-क्या रंग है हमने देखा
हो सकता है यह वही हो, कहें जिसे किस्मत का लेखा
(कवि अशोक कश्यप)
धर्म के पावन मर्म को देखा, पांडाओं के कर्म को देखा
देवी चरणों में चढ़ा नारियल, दोबारा फिर बिकते देखा
कुछ मत पूंछो इस जीवन का.................
इंसानों को बिकते देखा, यौवन को है सिसकते देखा
साठ साल के बुड्ढ़े को, रोमांस में खाते गोते देखा
कुछ मत पूंछो इस जीवन का, क्या-क्या रंग है हमने देखा
हो सकता है यह वही हो, कहें जिसे किस्मत का लेखा(कवि अशोक कश्यप)
Comments