हाल क्या है 


क्या बताऊँ हाल क्या है
क्या कहूँ ख्याल क्या है

बेबसी का पुलिंदा हूँ
मर गया हूँ और जिंदा हूँ
आस कुछ जीवन में नहीं है
ख़ास कुछ जीवन में नहीं है
खुद पे यूँ ही हंस रहा हूँ
लग रहा है फंस रहा हूँ
सोचता हूँ इस जहाँ में, प्रकृति का जाल क्या है

क्या बताऊँ हाल क्या है
क्या कहूँ ख्याल क्या है

जाल में हर हाल में हूँ
दुखी या खुशहाल मैं हूँ
दुःख तो फिर भी दुःख ही ठहरा
ख़ुशी में भी ग़म का पहरा
जितना पाया लगा कम था
पा के भी अनजान ग़म था
मिल गया जो उसे भोगूँ , ना मिला तो मलाल क्या है


क्या बताऊँ हाल क्या है
क्या कहूँ ख्याल क्या है

(कवि अशोक कश्यप)



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