जल्दी में हैं सब

जल्दी में हैं सब , भैया जल्दी में हैं सब
सिजेरियन से पैदा हो गए
जल्दी में हैं सब
ढाई साल के पढने बैठे
जल्दी में हैं सब
बारह साल के पिता पर ऐंठे
जल्दी में हैं सब
तेरह साल में गर्ल फ्रेंड है
जल्दी में हैं सब
देर रात को घर में आयें
जल्दी में हैं सब
अस्सी पर गाड़ी दौडाएं
जल्दी में हैं सब
ट्रक चढ़ गया टाँगें टूटीं याद आ गया रब
भैया जल्दी में हैं सब, भैया जल्दी में हैं सब

बीच सड़क पर तड़प रहे हैं
जल्दी में हैं सब
बिना रुके सब तरस खा रहे
जल्दी में हैं सब
दो घंटे में पुलिस आ रही
जल्दी में हैं सब
आके सारा माल खा रही
जल्दी में हैं सब
जिन्दा फूंका मरा समझकर शेष बचा क्या अब
भैया जल्दी में हैं सब , भैया जल्दी में हैं सब 
(कवि अशोक कश्यप)

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