प्रतियोगिता न. 11 के लिए ……
काली दीवाली: 2005 

हर आँख हुई नम
हर दिल में है ग़म
खुशियाँ मानाने के लिए तैयारी करते लोग
सभी बड़े बाज़ार, भरे पड़े हैं सामान से
इनको खरीद रहे हैं लोग, शान से
चारों तरफ भाग-दौड़, गहमा-गहमी है
हर आँख में चमक है, कोई नहीं सहमी है
लोग अपने घरों को सजा रहे हैं
दुकानदार अपनी दुकानों को सजा रहे हैं
तोहफों के आदान-प्रदान हो रहे हैं
शहरवासी जैसे मदहोशी में खोये हैं
किसी बहु की पहली दीवाली है
किसी ने अपनी कोठी बना ली है
कोई अपने परिवार को कपडे खरीद रहा है
कोई नई कार खरीद रहा है

अचानक ……………….
दिल दहला देने वाली खबर आई
खिलते चेहरों पर जैसे मुर्दनी छाई
अब सभी की निगाह टी. वी. पर लगी है
कहाँ ?  कब ?  कैसे ? …… कितने लोग मर गए
कितने हुए घायल ?
नहीं छनक रही थी अब कोई पायल
दुःख में बदल गये थे सब सुहाने पल
दिल्ली के तीन बड़े बाजारों में बम फटे थे
सैकड़ों घायल हुए, सैकड़ों मरे थे
कोई दिखा रहा था किसी बच्चे के हाथ का पंजा
कोई दिखा रहा था पैर
कहीं पड़ा था माँस, कही नहीं थी साँस
चारों तरफ हाहाकार है
लोग भाग रहे हैं
मगर अब घर सजाने को नहीं
अपनों को बचाने को
सब जगह सन्नाटा है …………

सब चुप अपने घरों में बैठे हैं
सबकी जबान पर और मन में अब यही बात है
क्यों  ? आखिर क्यों   ?
इन मासूमों की जान ली
क्यों इनकी खुशियाँ छीनीं
क्यों कोई सुहागिन विधवा हो गई   ?
क्यों कोई बच्चा अनाथ हो गया। ?
क्यों किसी घर का चिराग बुझ गया 
क्यों किसी बहन का भाई बिछड़ गया  ?
क्यों  ? आखिर क्यों   ?
(कवि अशोक कश्यप)






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