प्रतियोगिता -1 के लिए प्रविष्ठी ............
सरस्वती वंदना:
नव गीत दे, नव छंद दे, नव सृजन दे माँ शारदे
नव कल्पना के पंख दे, नव राग दे माँ शारदे
हे श्वेत धवला धारिणी, हे श्वेत कमल विराजिनी
संगीत के सुर दे हमें, कुछ गीत के गुण दे हमें
नव-प्रकृति नित नई धुन सृजन , नव ज्ञान दे माँ शारदे
है सारा जग सुर-ताल में, हर हाल में, हर हाल में
ये कोरा मन अपना भ्रमित, है क्या कुमति और क्या सुमति
इस मन को कुछ सद्ज्ञान दे, वरदान दे माँ शारदे
हिंसक पशु मुरली सुने, हिंसक मनुज लव-कुश गुने
वेदों में सारी ये धरा, औ पुराणी ज्ञान ही है खरा
कृपा की कालिदास पर, कोई मेघ दे माँ शारदे
नव गीत दे, नव छंद दे, नव सृजन दे माँ शारदे
नव कल्पना के पंख दे, नव राग दे माँ शारदे
(कवि अशोक कश्यप)
सरस्वती वंदना:
नव गीत दे, नव छंद दे, नव सृजन दे माँ शारदे
नव कल्पना के पंख दे, नव राग दे माँ शारदे
हे श्वेत धवला धारिणी, हे श्वेत कमल विराजिनी
संगीत के सुर दे हमें, कुछ गीत के गुण दे हमें
नव-प्रकृति नित नई धुन सृजन , नव ज्ञान दे माँ शारदे
है सारा जग सुर-ताल में, हर हाल में, हर हाल में
ये कोरा मन अपना भ्रमित, है क्या कुमति और क्या सुमति
इस मन को कुछ सद्ज्ञान दे, वरदान दे माँ शारदे
हिंसक पशु मुरली सुने, हिंसक मनुज लव-कुश गुने
वेदों में सारी ये धरा, औ पुराणी ज्ञान ही है खरा
कृपा की कालिदास पर, कोई मेघ दे माँ शारदे
नव गीत दे, नव छंद दे, नव सृजन दे माँ शारदे
नव कल्पना के पंख दे, नव राग दे माँ शारदे
(कवि अशोक कश्यप)
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