बाल कविता

मोबाईल फोन:

मैं हूँ इक मोबाईल फोन
देखा न जिसने ऐसा कौन
साथ हमेशा मैं रहता हूँ
सुख-दुःख संग संग सहता हूँ
चिट्ठी देता फ़ोटो लेता
भूले हों तो याद कर देता।

मैंने बिजनेस खूब बढ़ाया
धन और समय सभी का बचाया
उलझ गए तो हिसाब लगाया
और फिर तुमने खूब कमाया
घर ऑफिस और ऑफिस घर अब
पल में तुमरी मुट्ठी में सब।

मेरे आने से सिकुड़ गई दुनिया
पास सभी के मुन्ना हो या मुनिया।
(अशोक कश्यप)

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