हिंदी साहित्य वैभव मंडल की प्रतियोगिता न0-3 के लिए   ......

आज हुए ऋतुराज पहेली:

सुन चंपा और सुन री चमेली
सुनो मेरी हर एक सहेली

आज मेरा मन बहका सा है
तन-उपवन ये महका सा है
आज हुए ऋतुराज पहेली

सुन चंपा और सुन री चमेली
सुनो मेरी हर एक सहेली

अजब सी मस्ती में मन डूबा
ज्यों मैं हूँ जग की महबूबा
मेहंदी खुद ही रचे हथेली

सुन चंपा और सुन री चमेली
सुनो मेरी हर एक सहेली

आम फले महुआ गदराये
सरसों खेतों में लहराए
मैं सम्मोहित फिरूँ अकेली

सुन चंपा और सुन री चमेली
सुनो मेरी हर एक सहेली

प्रेम घटक मन का आकुल है
सागर मंथन को व्याकुल है
ज्यों दुल्हन कोई नई-नवेली

सुन चंपा और सुन री चमेली
सुनो मेरी हर एक सहेली
(कवि अशोक कश्यप)



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