दोस्तों, आज दिनांक 08-11-2012 को, राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र  'महामेधा' में प्रकाशित मेरी कविता 'स्वार्थी संसार'........ये अख़बार देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित होता है ...........धन्यवाद ... :)
 
स्वार्थी संसार:
 
दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला
इसके लिए कट जाये चाहे अपनों का गला
दुनियां में हर ज़हन .....................

अपने लिए सपने सजाये आसमान के
सपनों में आगे-पीछे भागे गुलिस्तान के
भगने में अगर चोट लगे उसके बदन पर
राहों से कोई फूल तोड़े मले चुभन पर.........
क्या फूल का अरमान कोई बाकी नहीं है....?
ये फूल से पूंछा, वो बोला मांफी नहीं है
अनसुनी करके फूल की वो आगे हो चला
दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला

रस्ते में फूल फैक कर मस्ती में खो गया
उस फूल का रस-पान करने बिच्छू आ गया
दौबारा वही शख्स जब उस राह से गुज़रा
उस फूल पर ही पैर पड़ा बिच्छू डंस गया
बिच्छू के डंक का पांव में घाव हो गया
इलाज़ सारे कर लिए ना ठीक वो हुआ
थक कर हकीम को पांव वो काटना पड़ा
दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला
 
इसके लिए कट जाये चाहे अपनों का गला
दुनियां में हर ज़हन चाहता अपना ही भला
(कवि अशोक कश्यप )

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