दिनांक 02-11-2012 को राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र  'महामेधा' में प्रकाशित मेरे मुक्तक ........ये अख़बार देश के सभी हिंदी भाषी राज्यों से प्रकाशित होता है ...........धन्यवाद ... :)
 
आभास तो ये होता है कि तुम मेरे हो
मगर खुलके कभी अपना मुझे कहा नहीं
तुमने दुनिया में अभी गुल-गुलिस्तां देखे हैं
मेरे जीवन में है काँटों के सिवा कुछ भी नहीं

प्यासा जीवन है और पानी नहीं दूर तलक
खाली तरकश है मगर जंग जीतने की ललक
बढ़ रहा हूँ मैं इक झीनी से रोशनी की तरफ
अभी तो ज़मीं अँधेरी है अँधेरा है फलक

मैं नहीं चाहता इन अंधेरों को तुम झेलो
रहो भटकन में अपनी ज़िन्दगी से यूँ खेलो
जब इश्वर भर रहा झोली तुम्हारी रत्नों से
मैं क्यों चाहूँ कि कंकरों को तुम मेरे ले लो
(कवि अशोक कश्यप)

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