मुक्त जीवन


जितना लगाव उतना अलगाव............

मुक्त जीवन:

मुक्त जीने में मज़ा है
बन्धनों में तो सजा है

बन्धनों को तोड़ देखो
छत्र-छाया छोड़ देखो
आसमां को ओढ़ देखो
आ मिलेगा जो रज़ा है

मुक्त जीने में मज़ा है
बन्धनों में तो सजा है

चलने दो जो चल रहा है
फलने दो जो फल रहा है
हाथ तू क्यों मल रहा है
खोने की तू खुद वजा है

मुक्त जीने में मज़ा है
बन्धनों में तो सजा है

न्याय का दामन न छोड़ो 
जकड़नों को भी तो तोड़ो  
साफ़ मन के तार जोड़ो
मैला मन तो बस लजा है

मुक्त जीने में मज़ा है
बन्धनों में तो सजा है
(कवि अशोक कश्यप)


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