आदर्श नारी
शीतल सुशील तन सरल मन
ज्यों खिली हुई चंदा किरन
मृदु वचन बोलती कंठ से
ज्यों भजन सुनाते भक्त जन
तन का श्रंगार मन से किया
मन का करती शालीनता
शालीन रहे रस रंगिनी
स्वीकारे नहीं आधीनता
मुस्कान जुही के फूल सी
ज्यों महके रानी रात की
सहचरी बनी रहे पति की
और कद्र करे जज़्बात की
अच्छी बेटी थी पिता घर
आदर्श बहू ससुराल में
दोनो घर की जो शान है
सब उसके हैं हर हाल में
(कवि अशोक कश्यप मो. ०९०१३२२६२७२)
ज्यों खिली हुई चंदा किरन
मृदु वचन बोलती कंठ से
ज्यों भजन सुनाते भक्त जन
तन का श्रंगार मन से किया
मन का करती शालीनता
शालीन रहे रस रंगिनी
स्वीकारे नहीं आधीनता
मुस्कान जुही के फूल सी
ज्यों महके रानी रात की
सहचरी बनी रहे पति की
और कद्र करे जज़्बात की
अच्छी बेटी थी पिता घर
आदर्श बहू ससुराल में
दोनो घर की जो शान है
सब उसके हैं हर हाल में
(कवि अशोक कश्यप मो. ०९०१३२२६२७२)
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