Kavita No.9 KOI HAI.wmv


लगभग 20-22 वर्ष पहले एक बहुत ही प्यारे मित्र के लिए लिखी कविता। ये कविता ग्यारह वर्ष पहले दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी की गोष्ठी में सुनाई थी।

कोई है :
बहुत याद आता है कोई, बहुत याद आता है कोई 
कभी हंसाता है, कभी रुलाता है कोई 
बहुत याद आता है कोई, बहुत याद आता है कोई 

कोई है जो अंतर आत्मा में बैठा है 
कोई है जो मेरा परमात्मा बन बैठा है 
कोई है जो नहीं हटता मेरे मस्तिष्क पटल से 
कोई है जो बना चुका है मेरे विचार अटल से 

कोई है जिसका दर्द मुझे आह देता है 
कोई है जिसका उल्लास मुझे राह देता है 
कोई है जिससे मिलकर तृप्त महसूस करता हूँ मैं 
कोई है जिसके बिना अभिशप्त महसूस करता हूँ मैं 
कोई है जो इच्छाएं जगाता है सोई-सोई 

बहुत याद आता है कोई, बहुत याद आता है कोई 
कभी हंसाता है, कभी रुलाता है कोई 
बहुत याद आता है कोई, बहुत याद आता है कोई 
(अशोक कश्यप)

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