ग़ज़ल: ऐसी बात
आज दिल बात ऐसी करता है
जैसे मयकश सुराही भरता है
इस ज़माने में बहुत खुशियाँ हैं
मगर उसको नहीं जो डरता है
दूर से दुःख नज़र नहीं आता
आदमी महलों में भी मरता है
शुद्धता आचारण की वाज़िब है
आचरण ही से मनुज तरता है
वो बहुत ख़ानदानी लगता था
पाँव जो गिरगिटों के पड़ता है
आसमानी उड़ानें हैं उसकी
हाथ जो तेरे सिर पे धरता है
बात 'कश्यप' ने कही वाज़िब है
चोर क्यों शाहजी से लड़ता है
(कवि अशोक कश्यप)
आज दिल बात ऐसी करता है
जैसे मयकश सुराही भरता है
इस ज़माने में बहुत खुशियाँ हैं
मगर उसको नहीं जो डरता है
दूर से दुःख नज़र नहीं आता
आदमी महलों में भी मरता है
शुद्धता आचारण की वाज़िब है
आचरण ही से मनुज तरता है
वो बहुत ख़ानदानी लगता था
पाँव जो गिरगिटों के पड़ता है
आसमानी उड़ानें हैं उसकी
हाथ जो तेरे सिर पे धरता है
बात 'कश्यप' ने कही वाज़िब है
चोर क्यों शाहजी से लड़ता है
(कवि अशोक कश्यप)
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